आरोग्यवर्धिनी वटी (Arogyavardhini vati) एक आयुर्वेदिक दवा है जो शास्त्रीय विधि से ग्रंथों के आधार पर बनाई गई है । आरोग्यवर्धिनी वटी Baidyanath एवं Divya कंपनियों के द्वारा बनायीं जाती है । आरोग्यवर्धिनी वटी अनेक बीमारियों जैसे हृदय रोग, पीलिया, कुष्ठ रोग, सूजन आना एवं अन्य कई बीमारियों में लाभदायक होती है । आरोग्यवर्धिनी वटी को आप नीचे दिए गए links से buy कर सकते हैं
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक Ingredients of Arogyavardhini Vati
1 | पारद ( Mercury) | 1 भाग | |
2 | गन्धक (Sulphur) | 1 भाग | |
3 | लोह भस्म | 1 भाग | |
4 | अभ्रक भस्म | 1 भाग | |
5 | ताम्र भस्म | 1 भाग | |
6 | हरीतकी (Terminalia chebula Retz.) | फल मज्जा | 2 भाग |
7 | विभीतकी (Terminalia bellirica Roxb.) | फल मज्जा | 2 भाग |
8 | आमलकी (Emblica officinalis Gaertn.) | फल मज्जा | 2 भाग |
9 | शिलाजतु | फल मज्जा | 3 भाग |
10 | गुग्गुल निर्यास | 4 भाग | |
11 | चित्रक (Plumbago zeylanica Linn.) | मूल | 4 भाग |
12 | कुटकी (Picrorhiza kurroa Royle ex Benth) | समभाग | |
13 | नीमपत्र के रस (Azadiracta indica Linn.) | पत्ते Q.S. मर्दन हेतु |
आरोग्यवर्धिनी वटी बनाने की विधि How to produce Arogyavardhini Vati
आरोग्यवर्धिनी वटी को बनाने की विधि इस प्रकार है । शुद्ध पारा एक तोला, शुद्ध गंधक एक तोला, लोहा भसम एक तोला, अभ्रक भस्म एक तोला, ताम्र भस्म एक तोला, हरड़, बहेड़ा तथा आमला प्रत्येक 2-2 तोला, शुद्ध शिलाजीत 3 तोला, शुद्ध गुग्गुल 4 तोला, चित्रक मूल की छाल 4 तोला ।
इन सभी दवाइयों को सर्वप्रथम सुखाकर साफ-सुथरा करके रख ले । इसके पश्चात पीसने वाली दवाइयों को कूट पीस छानकर रख लें । इसके पश्चात सर्वप्रथम पारा तथा गंधक की कजली बना ले एवं उसमें सभी भस्म, शुद्ध शिलाजीत एवं कपड़छन करके बाकी सभी दवाइयों को भी मिला दे ।
इसके पश्चात इस दवा को सुरक्षित रख दें । अब गूगल को नीम की ताजी पत्ती के रस में 2 दिन तक भिगोकर रख दें तथा 2 दिन के पश्चात गूगल को अच्छी तरह हाथ से खूब मसले तथा कपड़े से छानकर द्रव्य में सुरक्षित रखी हुई दवा को मिलाकर अच्छी तरह घोट । तब तक घोटते रहे जब तक मिश्रण खूब गढ़ा ना हो जाए ।
अब इस मिश्रण की 2-2 रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें । आरोग्यवर्धिनी वटी बनकर तैयार हो चुकी है ।
आरोग्यवर्धिनी वटी के गुण फायदे और उपयोग Arogyavardhini Vati Uses and Benefits
यह दवा पाचन तंत्र को ताकत देने वाली, जठराग्नि प्रबल करने वाली, नाड़ी शोधन करने वाली, दिल को ताकत देने वाली होती है ।
यह दवा लीवर, गुर्दों, गर्भाशय, आंख, हृदय एवं शरीर के किसी भी भीतरी अंग में दर्द में लाभकारी है ।
साथ ही पुराने बुखार, जलोदर तथा पीलिया रोग में इस दवा से लाभ मिलता है । यदि पीलिया रोग में रोगी को पतले पतले दस्त बार-बार होते हैं तो इस दवा का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
शरीर के किसी भी अंग में पीड़ा होने पर एवं जलोदर रोग में रोगी को केवल गाय का दूध ही सेवन कराना चाहिए । साथ में आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन करना चाहिए ।
यदि शोथ यकृत की वृद्धि के कारण हो तो पुनर्नवा क्वाथ में रोहिड़ा की छाल और शरपुंखा मूल मिलाकर उसके साथ इस दवा का सेवन करना चाहिए ।
यदि हृदय की समस्या हो तो आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ पुनर्नवादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ इसका प्रयोग कर सकते हैं ।
फेफड़ो कि कमजोरी में लाभकारी आरोग्यवर्धिनी वटी Arogyavardhini Vati Benefits in Lung Diseases
फेफड़ो कि कमजोरी में आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ 4 से 8 रत्ती बंग भस्म के साथ इसका सेवन किया जा सकता है । चर्बी कम करने के लिए रोगी को केवल गाय के दूध पर ही निर्भर रहना चाहिए साथ ही आरोग्यवर्धिनी वटी को महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन कराना चाहिए ।
इस दवा के सेवन से पाचक रस उचित मात्रा में निकलता है तथा लीवर को नई ऊर्जा और ताकत मिलती हैं । इस कारण यह दवा अपच, अजीर्ण आदि पेट की समस्याओं में भी लाभकारी होती है ।
कुछ नवयुवक और नव युक्तियां ऐसी होती हैं जो युवावस्था आने पर भी युवा नहीं दिखते हैं । अर्थात उनमें युवावस्था के लक्षण जैसे युवकों में दाढ़ी मूछ का आना, आवाज का भारी होना एवं लड़कियों में ब्रेस्ट एवं नितंब का आकार लेना आदि परिवर्तन देखने को नहीं मिलते हैं ।
इसका कारण शरीर पोषक ग्रंथियों का निष्क्रिय होना माना जाता है । ऐसी स्थिति में आरोग्यवर्धिनी वटी का निरंतर सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है ।
मूत्र रोग एवं गुर्दे कि समस्या में लाभकारी आरोग्यवर्धिनी वटी Arogyavardhini Vati Benefits in Urinal and Kidney Diseases
मूत्र विकार एवं गुर्दों की पुरानी एवं जटिल समस्याओं में आरोग्यवर्धिनी वटी का निरंतर सेवन लाभकारी होता है । मूत्र एवं गुर्दे कि समस्या में आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ बैद्यनाथ चंद्रप्रभा वटी chandraprabha vati baidyanath का सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है ।
हिचकी में लाभकारी आरोग्यवर्धिनी वटी
हिचकी रोग में यह दवा आराम पैदा करती है ।
कुष्ठ रोग में लाभकारी आरोग्यवर्धिनी वटी Arogyavardhini Benefits in leprosy
आरोग्यवर्धिनी वटी कुष्ठ रोग की आरंभिक अवस्था में लाभकारी होती है । आरोग्यवर्धिनी वटी के साथ निंबादी वटी, खदिरादि वटी एवं गंधक रसायन का प्रयोग भी किया जाता है । साथ ही यदि रोगी नीम के पेड़ के नीचे सोए तो लाभ बहुत जल्दी मिलता है ।
लेकिन आरोग्यवर्धिनी वटी कुष्ठ रोग की केवल प्रारंभिक अवस्था में ही फायदा करती है । यदि कुष्ठ रोग पुराना हो जाए एवं रक्त तथा मांस दूषित हो जाएं तथा त्वचा में मवाद पैदा हो जाए तो ऐसी स्थिति में यह दवा लाभ नहीं करती है । इस दवा को जब तक सेवन किया जाए तब तक गाय का दूध लगातार सेवन करना चाहिए ।
रोग बहुत ज्यादा पुराना होने पर रक्त और मांस दूषित हो जाता है तथा उस स्थान की त्वचा विकृत हो जाती है । यह स्थिति कफ और वायु के असंतुलन के कारण पैदा होती है तथा जिस स्थान की त्वचा विकृत होती है वहां की त्वचा बहुत ज्यादा खुरदरी होकर फट जाती है तथा उसमें से मवाद भी आने लगता है ।
यदि इस स्थान मैं खाज होने पर खुजाया जाए तो वहां छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती हैं । जो बाद में पक जाती हैं और इनमें बहुत ज्यादा दर्द होता है । ऐसी स्थिति में रोगी को गंधक रसायन के साथ-साथ आरोग्यवर्धिनी वटी का निरंतर सेवन गाय के दूध के साथ कराने पर बहुत अच्छा लाभ मिलता है ।
वात पित्त कफ इन तीनों ही दोषों में से किसी भी दोष के कारण यदि बुखार हो गया हो तो आरोग्यवर्धिनी वटी का सेवन कराने से बहुत जल्दी लाभ मिलता है ।
आरोग्यवर्धिनी वटी को सेवन करने की विधि, मात्रा और अनुपान Arogyavardhini Vati Dosage and directions
आरोग्यवर्धिनी वटी की रोगानुसार दो गोली सुबह एवं दो गोली शाम को जल, दूध, पुनर्नवादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ दी जा सकती हैं । अधिक जानकारी के लिए आप अपने चिकित्सक से संपर्क कर सकते हैं ।
आरोग्यवर्धिनी वटी कहां से खरीदें How to buy Arogyavardhini Vati
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